श्री रामचरितमानस » काण्ड 6: युद्ध काण्ड » चौपाई 69.4 |
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| | काण्ड 6 - चौपाई 69.4  | सोनित स्रवत सोह तन कारे। जनु कज्जल गिरि गेरु पनारे॥
बिकल बिलोकि भालु कपि धाए। बिहँसा जबहिं निकट कपि आए॥4॥ | | अनुवाद | | उसके काले शरीर से बहता रक्त ऐसा लग रहा था मानो काजल के पहाड़ से गेरू की धाराएँ बह रही हों। उसे व्याकुल देखकर भालू-बंदर उसकी ओर दौड़े। पास आते ही वह हँस पड़ा। | | The blood flowing from his black body looked as if streams of ochre were flowing from a mountain of kajal. Seeing him distraught, the bears and monkeys ran towards him. As soon as they came near, he laughed. |
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