श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  चौपाई 103.1
 
 
काण्ड 6 - चौपाई 103.1 
सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥
लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥1॥
 
अनुवाद
 
 एक बाण ने उनकी नाभि में स्थित अमृत कुण्ड को चूस लिया। शेष तीस बाण क्रोधित होकर उनके सिर और भुजाओं पर लगे। बाणों ने उनके सिर और भुजाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया। सिर और भुजाओं से रहित धड़ धरती पर नाचने लगा।
 
One arrow sucked out the nectar pool in his navel. The other thirty arrows got angry and hit his head and arms. The arrows took away his head and arms. The torso devoid of head and arms started dancing on the earth.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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