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काण्ड 5 - दोहा 31  |
निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥31॥ |
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अनुवाद |
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हे करुणा के भंडार! उनका प्रत्येक क्षण कल्प के समान बीतता है। अतः हे प्रभु! शीघ्र आकर अपनी बाहुओं के बल से दुष्टों के समूह को परास्त करके सीताजी को वापस ले आओ। |
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O treasure of compassion! His every moment passes like a kalpa. Therefore, O Lord! Come immediately and defeat the group of wicked people with the power of your arms and bring back Sitaji. |
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