श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  दोहा 29
 
 
काण्ड 5 - दोहा 29 
प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज॥29॥
 
अनुवाद
 
 दया के स्वरूप श्री रघुनाथजी ने प्रेमपूर्वक सबको गले लगाया और उनका कुशल-क्षेम पूछा। (वानरों ने कहा-) हे नाथ! आपके चरणकमलों का दर्शन पाकर अब हम कुशल से हैं।
 
Shri Raghunath, the embodiment of mercy, embraced everyone with love and asked about their well-being. (The monkeys said-) O Nath! I am well now after getting the darshan of your lotus feet.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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