श्री रामचरितमानस » काण्ड 5: सुन्दर काण्ड » चौपाई 42.1 |
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| | काण्ड 5 - चौपाई 42.1  | अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥ | | अनुवाद | | ऐसा कहकर विभीषणजी के जाते ही सब राक्षस प्राण त्यागकर चले गए। (उनकी मृत्यु निश्चित थी।) (भगवान शिव कहते हैं-) हे भवानी! संत का अपमान करने से समस्त कल्याण तुरंत नष्ट हो जाता है। | | Saying this, as soon as Vibhishanji left, all the demons lost their life. (Their death was certain). (Lord Shiva says-) O Bhavani! Insulting a saint immediately destroys all welfare. |
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