श्री रामचरितमानस » काण्ड 5: सुन्दर काण्ड » चौपाई 38.2 |
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| | काण्ड 5 - चौपाई 38.2  | पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥ | | अनुवाद | | वह पुनः सिर झुकाकर अपने आसन पर बैठ गया और अनुमति पाकर यह वचन कहने लगा- हे दयालु! चूँकि तुमने मुझसे मेरी राय पूछी है, अतः हे प्रिये! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हारे हित में जो कुछ है, वह तुम्हें बता रहा हूँ। | | He bowed his head again and sat on his seat and after getting permission, he said these words- O kind one, since you have asked me for my opinion, O dear! I am telling you what is in your best interest according to my wisdom. |
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