श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  चौपाई 33.5
 
 
काण्ड 5 - चौपाई 33.5 
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥5॥
 
अनुवाद
 
 हे श्री रघुनाथजी, यह सब आपका ही माहात्म्य है। हे नाथ! इसमें मेरा कोई माहात्म्य नहीं है।
 
All this is due to your greatness, O Shri Raghunathji. O Nath! There is no greatness of mine in this.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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