श्री रामचरितमानस » काण्ड 5: सुन्दर काण्ड » चौपाई 30.4 |
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| | काण्ड 5 - चौपाई 30.4  | सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥4॥ | | अनुवाद | | यह कथा सुनकर दयालु श्री रामचंद्रजी को बहुत अच्छी लगी। उन्होंने प्रसन्न होकर हनुमानजी को गले लगा लिया और कहा- हे प्रिये! मुझे बताओ, सीता किस प्रकार रहती हैं और अपने प्राणों की रक्षा करती हैं? | | On hearing this story, the compassionate Shri Ramchandraji liked it very much. He embraced Hanumanji happily and said- O dear! Tell me, how does Sita live and protect her life? |
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