श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  चौपाई 15.3
 
 
काण्ड 5 - चौपाई 15.3 
कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥3॥
 
अनुवाद
 
 मैं अपना ग़म ज़ाहिर भी करूँ तो कम हो जाता है। पर किससे ज़ाहिर करूँ? ये ग़म कोई नहीं जानता। ऐ मेरे प्यार! हमारे प्यार का राज़ सिर्फ़ मेरा दिल ही जानता है।
 
Even if I express my sorrow, it reduces my sorrow. But to whom should I express it? No one knows this sorrow. Oh my love! Only my heart knows the secret of our love.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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