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काण्ड 5 - चौपाई 15.3  |
कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥3॥ |
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अनुवाद |
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मैं अपना ग़म ज़ाहिर भी करूँ तो कम हो जाता है। पर किससे ज़ाहिर करूँ? ये ग़म कोई नहीं जानता। ऐ मेरे प्यार! हमारे प्यार का राज़ सिर्फ़ मेरा दिल ही जानता है। |
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Even if I express my sorrow, it reduces my sorrow. But to whom should I express it? No one knows this sorrow. Oh my love! Only my heart knows the secret of our love. |
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