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काण्ड 5 - चौपाई 11.4  |
यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं॥4॥ |
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अनुवाद |
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मैं विश्वासपूर्वक कहती हूँ कि यह स्वप्न चार दिन में ही पूरा हो जाएगा।’ उसके वचन सुनकर वे सभी राक्षसियाँ भयभीत होकर जानकी के चरणों पर गिर पड़ीं। |
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I say with confidence that this dream will come true in four (few) days. Hearing her words, all those demonesses got scared and fell at the feet of Janaki. |
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