श्री रामचरितमानस » काण्ड 5: सुन्दर काण्ड » छंद 3.2 |
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| | काण्ड 5 - छंद 3.2  | बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥2॥ | | अनुवाद | | वन, बाग-बगीचे, कुंज, पुष्प-विहार, तालाब, कुएँ और बावड़ियाँ सजी हुई हैं। मनुष्यों, नागों, देवताओं और गंधर्वों की कन्याएँ अपनी सुन्दरता से ऋषियों का मन मोह रही हैं। कहीं-कहीं पर्वतों के समान विशाल शरीर वाले अत्यंत बलवान पहलवान गर्जना कर रहे हैं। वे अनेक प्रकार से अनेक अखाड़ों में युद्ध करते हैं और एक-दूसरे को चुनौती देते हैं। | | Forests, gardens, groves, flowerbeds, ponds, wells and stepwells are decorated. The daughters of humans, serpents, gods and Gandharvas captivate the minds of sages with their beauty. Somewhere, very strong wrestlers with bodies as huge as mountains are roaring. They fight in many ways in many arenas and challenge each other. |
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