श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सोरठा 0a
 
 
काण्ड 4 - सोरठा 0a 
मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खान अघ हानि कर।
जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥0क॥
 
अनुवाद
 
 भगवान शिव और पार्वती के निवास स्थान काशी को मोक्ष की जन्मभूमि, ज्ञान की खान और पापों का नाश करने वाली मानकर हम उसका सेवन क्यों न करें?
 
Why should we not consume Kashi, the place where Lord Shiva and Parvati reside, considering it to be the birthplace of salvation, a mine of knowledge and the destroyer of sins?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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