श्री रामचरितमानस » काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड » दोहा 27 |
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| | काण्ड 4 - दोहा 27  | मोहि लै जाहु सिंधुतट देउँ तिलांजलि ताहि।
बचन सहाइ करबि मैं पैहहु खोजहु जाहि॥27॥ | | अनुवाद | | (उसने कहा-) मुझे समुद्र तट पर ले चलो, मैं जटायु की बलि चढ़ा दूँगा। इस सेवा के बदले में मैं अपने वचन से तुम्हारी सहायता करूँगा (अर्थात् तुम्हें बता दूँगा कि सीताजी कहाँ हैं), तुम्हें वह मिल जाएगी जिसे तुम खोज रहे हो। | | (He said-) Take me to the sea shore, I will sacrifice Jatayu. In return for this service, I will help you with my word (i.e. I will tell you where Sitaji is), you will find the one you are looking for. |
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