श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  चौपाई 21.4
 
 
काण्ड 4 - चौपाई 21.4 
तब रघुपति बोले मुसुकाई। तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई॥
अब सोइ जतनु करह मन लाई। जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई॥4॥
 
अनुवाद
 
 तब श्री रघुनाथजी ने मुस्कुराकर कहा, "हे भाई! तुम मुझे भरत के समान प्रिय हो। अब उस उपाय पर ध्यान दो जिससे सीता का समाचार मिल सके।"
 
Then Shri Raghunathji smiled and said- O brother! You are as dear to me as Bharat. Now concentrate on the method by which you can get news of Sita.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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