श्री रामचरितमानस » काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड » चौपाई 12.3 |
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| | काण्ड 4 - चौपाई 12.3  | जानतहूँ अस प्रभु परिहरहीं। काहे न बिपति जाल नर परहीं॥
पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई। बहु प्रकार नृपनीति सिखाई॥3॥ | | अनुवाद | | जो लोग ऐसे प्रभु को जानते हुए भी त्याग देते हैं, वे विपत्ति के जाल में क्यों न फँसें? तब श्री रामजी ने सुग्रीव को बुलाकर उसे अनेक प्रकार से राजनीति की शिक्षा दी। | | Why shouldn't those who abandon such a Lord despite knowing it, get trapped in the web of calamity? Then Shri Ramji called Sugreeva and taught him politics in many ways. |
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