श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  चौपाई 29a.7
 
 
काण्ड 3 - चौपाई 29a.7 
की मैनाक कि खगपति होई। मम बल जान सहित पति सोई॥
जाना जरठ जटायू एहा। मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा॥7॥
 
अनुवाद
 
 यह या तो मैनाक पर्वत है या पक्षियों के स्वामी गरुड़। परन्तु वह (गरुड़) अपने स्वामी विष्णु के साथ-साथ मेरे बल को भी जानता है! (जब वह थोड़ा निकट आया) तो रावण ने उसे पहचान लिया (और कहा-) यह बूढ़ा जटायु है। यह मेरे हाथ के पवित्र स्थान में अपना शरीर त्याग देगा।
 
This is either Mainak mountain or Garuda, the lord of birds. But he (Garuda) knows my strength along with his lord Vishnu! (When he came a little closer) Ravana recognized him (and said-) This is old Jatayu. He will leave his body in the holy place of my hand.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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