श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  चौपाई 17.1
 
 
काण्ड 3 - चौपाई 17.1 
भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा॥
एहि बिधि कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती॥1॥
 
अनुवाद
 
 इस भक्तियोग को सुनकर लक्ष्मणजी को बहुत प्रसन्नता हुई और उन्होंने प्रभु श्री रामचंद्रजी के चरणों में सिर नवाया। इस प्रकार वैराग्य, ज्ञान, सदाचार और नीति की बातें करते हुए कुछ दिन बीत गए।
 
Hearing this Bhakti Yoga, Lakshmanji felt very happy and he bowed his head at the feet of Lord Shri Ramchandraji. In this way, some days passed by talking about detachment, knowledge, virtue and ethics.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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