श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  दोहा 68
 
 
काण्ड 2 - दोहा 68 
बहुरि बच्छ कहि लालु कहि रघुपति रघुबर तात।
कबहिं बोलाइ लगाइ हियँ हरषि निरखिहउँ गात॥68॥
 
अनुवाद
 
 हे प्रिये! मैं तुम्हें 'वत्स' (पुत्र), 'लाल' (पुत्र), 'रघुपति' (पति) और 'रघुवर' कहकर कब बुलाऊँगी और कब तुम्हारा आलिंगन करूँगी और कब तुम्हारे अंग-प्रत्यंगों को हर्षपूर्वक देखूँगी?
 
O dear! Calling you 'Vatsa' (son), 'Laal' (son), 'Raghupati' (husband) and 'Raghuvar', when will I call you and embrace you and look at your body parts with joy?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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