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काण्ड 2 - दोहा 56 
यह बिचारि नहिं करउँ हठ झूठ सनेहु बढ़ाइ।
मानि मातु कर नात बलि सुरति बिसरि जनि जाइ॥56॥
 
अनुवाद
 
 यही सोचकर, मैं झूठा स्नेह जताने की ज़िद नहीं करती! बेटा! मेरा आशीर्वाद ले लो, मुझे अपनी माँ समझकर मत भूलना।
 
Thinking this, I do not insist on showing false affection! Son! I take my blessings, do not forget me considering me as your mother.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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