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काण्ड 2 - दोहा 20  |
अपनें चलत न आजु लगि अनभल काहुक कीन्ह।
केहिं अघ एकहि बार मोहि दैअँ दुसह दुखु दीन्ह॥20॥ |
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अनुवाद |
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मैंने आज तक किसी का कोई अहित नहीं किया (जहाँ तक हो सकता है)। फिर पता नहीं किस पाप के कारण भगवान ने मुझे एक साथ यह असहनीय पीड़ा दे दी। |
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I have never done any harm to anyone till date (as far as I can). Then I don't know due to which sin the God has given me this unbearable pain all at once. |
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