श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » दोहा 168 |
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| | काण्ड 2 - दोहा 168  | मातु भरत के बचन सुनि साँचे सरल सुभायँ।
कहति राम प्रिय तात तुम्ह सदा बचन मन कायँ॥168॥ | | अनुवाद | | भरत के सहज सत्य और सरल वचन सुनकर माता कौशल्या बोलीं, "हे प्यारे भाई! तुम मन, वाणी और शरीर से सदैव श्री राम को प्रिय हो। | | On hearing Bharata's naturally true and simple words, mother Kausalya said, "O dear brother! You are always dear to Shri Rama in mind, speech and body. |
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