श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 89.2
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 89.2 
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा। लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा॥
तब निषादपति उर अनुमाना। तरु सिंसुपा मनोहर जाना॥2॥
 
अनुवाद
 
 कुछ लोग कहते हैं- राजा ने अच्छा काम किया, इसी से ब्रह्मा ने हमें नेत्रों का लाभ भी दिया। तब निषाद राजा ने मन ही मन विचार करके अशोक वृक्ष को अपने रहने के लिए सुन्दर स्थान समझा।
 
Some say- The king did a good deed, due to this Brahma also gave us the benefit of eyes. Then Nishad king thought in his heart and found the Ashoka tree to be a beautiful place (for his stay).
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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