श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 88.1 |
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| | काण्ड 2 - चौपाई 88.1  | यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बंधु बोलाई॥
लिए फल मूल भेंट भरि भारा। मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा॥1॥ | | अनुवाद | | जब निषादराज गुह को यह समाचार मिला, तो वे अपने प्रियजनों और संबंधियों को बुलाकर उनसे मिलने गए और उपहार स्वरूप देने के लिए फल, कंद-मूल लेकर उन्हें टोकरियों (बहंगियों) में भर लिया। उनका हृदय हर्ष से भर गया। | | When Nishadraj Guha got this news, he called his dear ones and relatives and went to meet them carrying fruits, roots (tubers) to give as gifts and filled them in baskets (bahangis). His heart was filled with joy. |
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