श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 68.3
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 68.3 
कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई। लगे मातु पद आसिष पाई॥
बेगि प्रजा दुख मेटब आई। जननी निठुर बिसरि जनि जाई॥3॥
 
अनुवाद
 
 श्री रामचंद्रजी ने मधुर वचन कहकर अपनी प्रियतमा सीताजी को सान्त्वना दी। फिर उन्होंने माता के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। (माता ने कहा-) बेटा! शीघ्र लौटकर प्रजा का दुःख दूर करो और यह निर्दयी माता तुम्हें न भूले!
 
Shri Ramchandraji consoled his beloved Sitaji by saying sweet words. Then he touched the feet of his mother and got her blessings. (Mother said-) Son! Return soon and end the sufferings of the people and this cruel mother should not forget you!
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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