श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 46.4 |
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| | काण्ड 2 - चौपाई 46.4  | सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी॥
जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई॥4॥ | | अनुवाद | | यह सुनकर सभी नर-नारी ऐसे व्याकुल हो गए जैसे जंगल में आग लगने पर बेलें और पेड़ सूख जाते हैं। जहाँ भी जो यह सुनता, सिर पीटने लगता! यह बहुत दुःख की बात है, कोई भी धैर्य नहीं रख सकता। | | On hearing this, all the men and women became so distraught as the vines and trees wither away on seeing a forest fire. Wherever anyone hears this, he starts banging his head! It is very sad, no one can remain patient. |
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