श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 322.1 |
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| | काण्ड 2 - चौपाई 322.1  | मुनि महिसुर गुर भरत भुआलू। राम बिरहँ सबु साजु बिहालू।
प्रभु गुन ग्राम गनत मन माहीं। सब चुपचाप चले मग जाहीं॥1॥ | | अनुवाद | | ऋषि, ब्राह्मण, गुरु वशिष्ठ, भरत और राजा जनक का सारा समुदाय श्रीराम के वियोग में दुःखी है। सभी लोग मन ही मन प्रभु के गुणों का स्मरण करते हुए मार्ग पर चुपचाप चल रहे हैं। | | The entire community of sages, Brahmins, Guru Vashishtha, Bharata and King Janaka are inconsolable for the separation from Shri Ram. Everyone is walking quietly on the road, remembering the qualities of the Lord in their minds. |
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