श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 308.2
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 308.2 
चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन। खग मृग सर सरि निर्झर गिरिगन॥
प्रभु पद अंकित अवनि बिसेषी। आयसु होइ त आवौं देखी॥2॥
 
अनुवाद
 
 यदि आप अनुमति दें तो मैं चित्रकूट जाकर वहाँ के पवित्र स्थानों, तीर्थों, वनों, पशु-पक्षियों, तालाबों, नदियों, झरनों और पर्वत-समूहों तथा विशेष रूप से भगवान (आपके) चरण-चिह्नों से चिन्हित भूमि को देखना चाहूँगा।
 
If you permit, I would like to visit Chitrakoot and see its holy places, pilgrimage sites, forests, birds and animals, ponds, rivers, waterfalls and groups of mountains, and especially the land marked by the Lord's (your) footprints.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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