श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 237.3 |
|
| | काण्ड 2 - चौपाई 237.3  | मानहुँ तिमिर अरुनमय रासी। बिरची बिधि सँकेलि सुषमा सी॥
ए तरु सरित समीप गोसाँई। रघुबर परनकुटी जहँ छाई॥3॥ | | अनुवाद | | ऐसा प्रतीत होता है मानो ब्रह्माजी ने समस्त परम सौन्दर्य को एकत्रित करके एक श्याम वर्ण और लालिमायुक्त पिंड का निर्माण किया हो। हे प्रभु! ये वृक्ष नदी के किनारे हैं, जहाँ श्री राम की कुटिया फैली हुई है। | | It seems as if Lord Brahma has gathered all the supreme beauty and created a dark and reddish mass. Oh Lord! These trees are near the river, where Shri Ram's hut is spread. |
| ✨ ai-generated | |
|
|