श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 216.4
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 216.4 
राम बास थल बिटप बिलोकें। उर अनुराग रहत नहिं रोकें॥
देखि दसा सुर बरिसहिं फूला। भइ मृदु महि मगु मंगल मूला॥4॥
 
अनुवाद
 
 श्री रामचंद्रजी जिन स्थानों और वृक्षों पर ठहरे थे, उन्हें देखकर उनका प्रेम न रुक सका। भरतजी की दशा देखकर देवता पुष्पवर्षा करने लगे। पृथ्वी कोमल हो गई और मार्ग मंगलमय हो गया।
 
Seeing the places and trees where Shri Ramchandraji stayed, his love for them could not be stopped. Seeing Bharatji's condition, the gods started showering flowers. The earth became soft and the path became auspicious.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.