श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 214.1
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 214.1 
रिधि सिधि सिर धरि मुनिबर बानी। बड़भागिनि आपुहि अनुमानी॥
कहहिं परसपर सिधि समुदाई। अतुलित अतिथि राम लघु भाई॥1॥
 
अनुवाद
 
 ऋद्धि-सिद्धि ने मुनि की आज्ञा मानकर अपने को सौभाग्यशाली समझा। सभी सिद्धियाँ आपस में कहने लगीं- श्री रामचन्द्रजी के छोटे भाई भरत ऐसे अतिथि हैं, जिनकी तुलना कोई नहीं कर सकता।
 
Riddhi-Siddhi considered themselves fortunate after obeying the sage's command. All the Siddhis started saying amongst themselves- Bharat, the younger brother of Shri Ramchandraji, is such a guest that no one can compare with him.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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