श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 201.2
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 201.2 
ते अब फिरत बिपिन पदचारी। कंद मूल फल फूल अहारी॥
धिग कैकई अमंगल मूला। भइसि प्रान प्रियतम प्रतिकूला॥2॥
 
अनुवाद
 
 वही श्री रामचन्द्रजी अब पैदल वनों में घूमते हैं और कंद-मूल, फल-फूल खाते हैं। धिक्कार है कैकेयी को, जो समस्त विपत्तियों की जड़ थी, जिसने अपने प्रिय पति से भी बैर कर लिया।
 
The same Shri Ramchandraji now roams the forests on foot and eats roots and fruits and flowers. Shame on Kaikeyi, the root of all misfortune, who turned hostile even towards her beloved husband.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.