श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 176.2
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 176.2 
बन रघुपति सुरपति नरनाहू। तुम्ह एहि भाँति तात कदराहू॥
परिजन प्रजा सचिव सब अंबा। तुम्हहीं सुत सब कहँ अवलंबा॥2॥
 
अनुवाद
 
 श्री रघुनाथजी वन में हैं, महाराज स्वर्ग पर राज करने गए हैं और हे पुत्र! तुम इतने दुःखी हो। हे पुत्र! तुम ही कुल, प्रजा, मंत्री और सभी माताओं के एकमात्र आधार हो। हे पुत्र! तुम ही अपने कुल, प्रजा, मन्त्रियों और समस्त ...
 
Shri Raghunathji is in the forest, Maharaj has gone to rule heaven and O son! You are so distressed. O son! You are the only support of the family, subjects, ministers and all the mothers.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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