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काण्ड 2 - चौपाई 176.1  |
कौसल्या धरि धीरजु कहई। पूत पथ्य गुर आयसु अहई॥
सो आदरिअ करिअ हित मानी। तजिअ बिषादु काल गति जानी॥1॥ |
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अनुवाद |
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कौसल्याजी भी धैर्यपूर्वक कह रही हैं- हे पुत्र! गुरुजी की आज्ञा आहार के समान है। इसे व्यक्ति के हित में मानकर इसका आदर और पालन करना चाहिए। काल की गति को जानकर दुःख का त्याग कर देना चाहिए। |
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Kausalyaji is also saying patiently- O son! Guruji's order is like a diet. It should be respected and followed considering it to be in the interest of the person. Knowing the pace of time, one should give up sorrow. |
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