श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 176.1
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 176.1 
कौसल्या धरि धीरजु कहई। पूत पथ्य गुर आयसु अहई॥
सो आदरिअ करिअ हित मानी। तजिअ बिषादु काल गति जानी॥1॥
 
अनुवाद
 
 कौसल्याजी भी धैर्यपूर्वक कह ​​रही हैं- हे पुत्र! गुरुजी की आज्ञा आहार के समान है। इसे व्यक्ति के हित में मानकर इसका आदर और पालन करना चाहिए। काल की गति को जानकर दुःख का त्याग कर देना चाहिए।
 
Kausalyaji is also saying patiently- O son! Guruji's order is like a diet. It should be respected and followed considering it to be in the interest of the person. Knowing the pace of time, one should give up sorrow.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.