श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  चौपाई 148.2
 
 
काण्ड 2 - चौपाई 148.2 
दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई॥
जाइ सुमंत्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चंदु बिराजा॥2॥
 
अनुवाद
 
 मंत्री को व्याकुल देखकर दासियाँ उन्हें कौसल्याजी के महल में ले गईं। वहाँ जाकर सुमन्त्र ने देखा कि राजा ऐसे बैठे हैं मानो वे अमृतविहीन चन्द्रमा हों।
 
Seeing the minister distraught, the maids took him to Kausalyaji's palace. Sumantra went there and saw the king sitting as if he was the moon without nectar.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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