श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 129.2 |
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| | काण्ड 2 - चौपाई 129.2  | सीस नवहिं सुर गुरु द्विज देखी। प्रीति सहित करि बिनय बिसेषी॥
कर नित करहिं राम पद पूजा। राम भरोस हृदयँ नहिं दूजा॥2॥ | | अनुवाद | | जिनके सिर भगवान, गुरु और ब्राह्मणों को देखकर प्रेम और नम्रता से झुक जाते हैं, जिनके हाथ प्रतिदिन श्री रामचंद्रजी (आप) के चरणों की वंदना करते हैं और जिनके हृदय में केवल श्री रामचंद्रजी (आप) पर ही विश्वास है, अन्य किसी पर नहीं। | | Those whose heads bow down with love and humility on seeing God, Guru and Brahmins, whose hands daily worship the feet of Shri Ramachandraji (you) and whose hearts have faith only in Shri Ramachandraji (you) and no one else. |
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