श्री रामचरितमानस » काण्ड 2: अयोध्या काण्ड » चौपाई 119.2 |
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| | काण्ड 2 - चौपाई 119.2  | निपट निरंकुस निठुर निसंकू। जेहिं ससि कीन्ह सरुज सकलंकू॥
रूख कलपतरु सागरु खारा। तेहिं पठए बन राजकुमारा॥2॥ | | अनुवाद | | वह विधाता सर्वथा निरंकुश (स्वतन्त्र), निर्दयी और निर्भय है, जिसने चन्द्रमा को रोगी (बढ़ता और घटता हुआ) और कलंकित कर दिया, कल्पवृक्ष को वृक्ष बना दिया और समुद्र को खारा बना दिया। उसी ने इन राजकुमारों को वन में भेजा है। | | That creator is absolutely autocratic (independent), ruthless and fearless, who made the moon sick (waxing and decreasing) and blemished, made the Kalpavriksha a tree and the sea salty. He is the one who has sent these princes to the forest. |
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