श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » दोहा 45 |
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| | काण्ड 1 - दोहा 45  | संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥45॥ | | अनुवाद | | हे प्रभु! संतजन ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण और ऋषिगण भी यही कहते हैं कि गुरु से बातें छिपाने से शुद्ध ज्ञान हृदय में नहीं आता। | | O Lord! Saints say such a policy and Vedas, Puranas and sages also say that by hiding things from the Guru, pure knowledge does not come in the heart. |
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