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काण्ड 1 - दोहा 335  |
रूप सिंधु सब बंधु लखि हरषि उठा रनिवासु।
करहिं निछावरि आरती महा मुदित मन सासु॥335॥ |
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अनुवाद |
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सुन्दरता के सागर उन सभी भाइयों को देखकर सारा हरम प्रसन्न हो गया। सास-ससुर ने बड़ी प्रसन्नता से उन्हें प्रणाम किया और आरती उतारी। |
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The entire harem became delighted on seeing all the brothers who were seas of beauty. The mothers-in-law offered obeisance and performed aarti with great happiness. |
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