श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » दोहा 207 |
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| | काण्ड 1 - दोहा 207  | देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान।
धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान॥207॥ | | अनुवाद | | हे राजन! प्रसन्न मन से उन्हें दान दो, आसक्ति और अज्ञान का त्याग करो। हे प्रभु! ऐसा करने से तुम्हें धर्म और यश की प्राप्ति होगी और उनका परम कल्याण होगा। | | O King! Give to them with a happy mind, leave attachment and ignorance. O Lord! By doing this you will attain Dharma and good fame and they will attain ultimate welfare. |
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