श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 97.3
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 97.3 
जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी॥
अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता॥3॥
 
अनुवाद
 
 अपनी माता को व्याकुल देखकर पार्वती ज्ञान से परिपूर्ण कोमल वाणी में बोलीं- हे माता! ईश्वर जो कुछ रचता है, उसे बदला नहीं जा सकता, ऐसा सोचकर तुम चिन्ता मत करो।
 
Seeing her mother upset, Parvati spoke in a soft voice full of wisdom- O Mother! Whatever God creates cannot be changed, do not worry thinking like this.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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