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काण्ड 1 - चौपाई 83.4  |
एहि बिधि भलेहिं देवहित होई। मत अति नीक कहइ सबु कोई॥
अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू। प्रगटेउ बिषमबान झषकेतू॥4॥ |
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अनुवाद |
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यदि यह उपाय देवताओं के लिए हितकर भी हो (और कोई उपाय नहीं है) तो भी सबने कहा - यह सलाह बहुत अच्छी है। तब देवताओं ने बड़े प्रेम से स्तुति की। तब कामदेव विषम (पाँच) बाण धारण किए हुए और मछली के चिह्न वाला ध्वज लिए हुए प्रकट हुए। |
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Even if this way is beneficial for the gods (there is no other way) everyone said - this advice is very good. Then the gods praised with great love. Then Kaamdev appeared holding odd (five) arrows and having a flag with the symbol of a fish. |
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