श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 65.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 65.2 
भै जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु संभु बिमुख कै होई॥
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं संछेप बखानी॥2॥
 
अनुवाद
 
 जगत-प्रसिद्ध दक्ष का वही हश्र हुआ जो शिव-द्रोही का हुआ था। यह इतिहास सारा संसार जानता है, इसलिए मैंने इसका संक्षेप में वर्णन किया है।
 
The world-famous fate of Daksha was the same as that of a traitor to Shiva. The whole world knows this history, so I have described it in brief.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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