श्री रामचरितमानस » काण्ड 1: बाल काण्ड » चौपाई 44.1 |
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| | काण्ड 1 - चौपाई 44.1  | भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥1॥ | | अनुवाद | | प्रयाग में ऋषि भारद्वाज रहते हैं। उनका श्री राम के चरणों में अगाध प्रेम है। वे तपस्वी हैं, वश में मन वाले हैं, इन्द्रियों को वश में रखते हैं, करुणा के भंडार हैं और दान के मार्ग में अत्यंत चतुर हैं। | | Sage Bharadwaj lives in Prayag. He has immense love for the feet of Shri Ram. He is an ascetic, has a controlled mind, has controlled his senses, is a repository of compassion and is very clever in the path of charity. |
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