श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 3a.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 3a.2 
बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना॥2॥
 
अनुवाद
 
 वाल्मीकि, नारद और अगस्त्य ने अपने मुख से उनकी जीवन गाथाएँ कही हैं। इस संसार में अनेक प्रकार के जीव हैं, जल में रहने वाले, स्थल पर चलने वाले और आकाश में विचरण करने वाले।
 
Valmiki, Narad and Agastya have narrated their life stories through their own mouths. There are many types of living beings in this world, living in water, walking on land and roaming in the sky.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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