श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 330.3
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 330.3 
करि प्रनामु पूजा कर जोरी। बोले गिरा अमिअँ जनु बोरी॥
तुम्हरी कृपाँ सुनहु मुनिराजा। भयउँ आजु मैं पूरन काजा॥3॥
 
अनुवाद
 
 राजा ने उन्हें प्रणाम करके प्रणाम किया और हाथ जोड़कर ऐसे बोले, मानो अमृतवाणी हुई हो - हे मुनिराज! सुनिए, आज आपके आशीर्वाद से मुझे अपना लक्ष्य प्राप्त हो गया।
 
The king bowed down and worshipped him and with folded hands spoke as if he had spoken in nectar - O Muniraj! Listen, today because of your blessings I have achieved my goal.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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