श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 301.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 301.2 
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिएँ आरती मंगल थारीं॥2॥
 
अनुवाद
 
 राजा दशरथ के द्वार पर इतनी भीड़ है कि अगर वहाँ पत्थर भी फेंका जाए, तो चूर-चूर हो जाएगा। छतों पर बैठी स्त्रियाँ हाथ में आरती की थालियाँ लिए यह सब देख रही हैं।
 
There is such a huge crowd at King Dasharath's door that if a stone is thrown there, it will be crushed to dust. Women sitting on the terraces are watching with aarti plates in their hands.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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