श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 301.1
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 301.1 
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥1॥
 
अनुवाद
 
 हाथी दहाड़ रहे हैं, उनकी घंटियाँ भयानक ध्वनि कर रही हैं। रथ घरघरा रहे हैं और घोड़े चारों ओर हिनहिना रहे हैं। नगाड़े बादलों का अनादर करते हुए ज़ोर-ज़ोर से शोर मचा रहे हैं। कोई भी अपनी या दूसरों की कोई बात नहीं सुन पा रहा है।
 
The elephants are roaring, their bells are making a terrifying sound. The chariots are wheezing and the horses are neighing all around. The drums are making a loud noise disrespecting the clouds. No one can hear anything about their own or others.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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