श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 300.4
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 300.4 
कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा॥
चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई॥4॥
 
अनुवाद
 
 पालकी उठाने वाले लाखों काँवड़ियाँ लेकर चल रहे थे। उनमें नाना प्रकार की इतनी सारी वस्तुएँ थीं कि उनका वर्णन कौन कर सकता है। सेवकों के सभी समूह अपने-अपने समूहों में चल रहे थे।
 
The palanquin bearers went carrying millions of Kanwars. There were so many things of various kinds in them that who can describe them. All the groups of servants went in their own groups.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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