श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 295.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 295.2 
प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी। मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बानी॥
मुदित असीस देहिं गुर नारीं। अति आनंद मगन महतारीं॥2॥
 
अनुवाद
 
 प्रेम से विह्वल रानियाँ ऐसी सुन्दर लग रही हैं जैसे बादलों की गर्जना सुनकर मोर प्रसन्न हो जाते हैं। वृद्ध (या गुरुओं की) पत्नियाँ प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वाद दे रही हैं। माताएँ अपार आनंद में डूबी हुई हैं।
 
The queens, overjoyed with love, are looking so beautiful as the peacocks become overjoyed on hearing the roar of the clouds. The elderly (or the Gurus') wives are happily giving their blessings. The mothers are immersed in immense joy.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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