श्री रामचरितमानस  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  चौपाई 291.2
 
 
काण्ड 1 - चौपाई 291.2 
तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे॥
भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे॥2॥
 
अनुवाद
 
 तब राजा ने दूतों को अपने पास बिठाया और हृदय को मोह लेने वाली मधुर वाणी कही, "भैया! कहो, दोनों बालक कुशल से तो हैं? तुमने उन्हें अपनी आँखों से कुशल से देखा है न?"
 
Then the king made the messengers sit near him and spoke sweet words that won the heart's love- Brother! Tell me, are both the children well? You have seen them well with your own eyes, right?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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